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Nothing to say, yet
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पंद्रा साल बाद समीर आ रहा है याद है तुम दोनों बच्पन में एक साथ पढ़ाई करते थे समीर आ रहा है हाँ तो कुछ नहीं माना हम यहाँ है दिल मगर वहाँ है बही दूर हम से हम पफर निरा है बंद के हवा भिजा मिले लेकिन नहीं जानती उके दिल में है क्या कुछ बाती है कहनी उनके साहती भी नहीं कहता है कुछ बाती है कहनी उनके साहती भी नहीं कहता है साथ से रह हमें हर कदर चाहें जंदवी में हमें सिर्फ दूर चाहें इस साथ हमें कुछ नहीं चाहें आरदों है यही निर्वन जोई तुम्हें मानते है खुदात भिगाना हमारी नहर से कभी देखना कुछ बाती है कहनी उनके साहती भी नहीं कहता है जो मेरे दिल है उसे है या नहीं सोच करें हर जपा भवना करें शाम हो आखरी याद है आज भी हो के हम तुम जुड़ा फिर मिले ना कभी दिल ये कहता रहा रोक लो तुम हमें तुमने जानते हुए कुछ कहा ही नहीं आँखों में नहीं एक आँसों मगर दिल में कितनी बरसाते हैं जा रहे हैं सनंद मैं फिलों से तेरी प्यार तेरा यही छोड़ जाते हैं ये दोबार कभी आँखों में नच वें अब तेरे सभी तोड़ जाते हैं कुछ बात ही है कहनी उनसे शाह के भी नहीं कह पाते जो मेरे दिल में है उसके है या नहीं सोचते हैं हर दोबार धब्राएं