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Gita ( Untuned ) (enhanced)

Gita ( Untuned ) (enhanced)

Hitesh

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Arjuna, how did you acquire this knowledge? It is not appropriate for someone who knows the value of life. It leads to shame, not heaven. Don't become weak and indecisive. You are a terrifying dream for your enemies. Overcome this petty weakness in your heart and stand up for the battle. You speak like a wise person but mourn for those who do not deserve it. A wise person neither mourns for the living nor the dead. What I am, you are not. This body is perishable, but the soul is eternal. The body surrounds the soul, but cannot destroy it. The end of the body is inevitable, but the soul can neither be killed nor killed. The soul is not born and will not die. The person who understands this cannot kill or be killed. Just as a person discards old clothes and wears new ones, the soul can discard the body and take a new one. Therefore, you should not grieve for the body. अर्जुन, तुम्हारे मन में यह ग्यान आया कैसे? यह उस इन्सान के लिए ज़रा भी सही नहीं है जो जिन्देगी की कीमत को जानता हो. इससे स्वर्ग नहीं, शर्मिंदगी मिलती है. पार, इस तरह न पुनसक न बनो, यह तुम्हारे मताबिक नहीं. तुम तो दुश्मिनों के लिए एक डरावना सपना हो. अपने दिल से इस तुछ नाजुक्ता को दूल करो और जंग के लिए खड़े हो जाओ. तुम ग्यानियों की तरह बाते करते हो और शोक उनके लिए कर रहे हो जो इस लाइक नहीं है. एक विद्वान ना तो जिन्दा का शोक करता है ना ही मरेका. ऐसा कभी नहीं हुआ जो मैं नहीं था, तुम नहीं थे या ये सबी राज़र नहीं थे और ना ही कभी ऐसा होगा नहीं है और मरने के बाद दूसरे शरीर दारण करती है. एक ऐसा व्यक्ति जिसमें सब्र होता है वो ऐसे बदलावों के मौव में नहीं पड़ता. अर्जुन, सुख, दुख, मोसम के समान हैं, जो सर्दी गर्मी की तारा आते जाते रहते हैं. क्या सुख, क्या दुख, ये तो एंद्रियो सब्पन्ध होते हैं और इंसान को उन्हें समझना आना चाहिए और जो इनसे विचलिप नहीं होता, वही मुक्ति के लाइक है. कई ग्यानियों ने आत्मा को उच्छे से समझकर ये निशकर्ष निकाला है कि शरीर कभी एकसा नहीं रहता पर रूह, रूह हमेशा एकसी रहती है. शरीर आत्मा को हरोजे घेरे रहता है और इससे नष्ट करने का समल तिल खिसी में नहीं. शरीर का अन्त समभव है पर आत कि वो जीवात्मा को माल सकता है या जो जीवात्मा को मरी हुई समझता है वो दोनों ही अग्यानी हैं क्योंकि आत्मा तो ना मलती है और ना ही इसे मारा जा सकता है. आत्मा किसी भी काल में ना तो जन्मी है ना ही मरेगी. शरीर मरता है आत्मा नहीं. जो व्यक्ति ये समझ जाता है कि आत्मा तो कभी जन्मी ही नहीं है, हमेशा रहने वाली है और ना ही मारी जा सकती है, वो व्यक्ति किसी को भना कैसे मार या मरवा सकता है. जिस तरह से इंसान पुराने वस्तरों को त्याग कर नई वस्तरों को धारन करता है उसी तरह से आत जा सकता है, ना पानी से भिगोया जा सकता है और ना ही हावा से सुखाया जा सकता है, इसलिए तुम्हें शरीर का दुख नहीं करना चाहिए. जो जन्म है, वो मरेगा और मरने के बाद दोबारा जन्म लेगा. इसलिए जिसका होना दैय है, ऐसे करतव्य से तुम्हें पी� पर कई लोग होते हैं जो इसे सुनकर भी समझ नहीं पाते. सुखाया जा सकता है, इसलिए तुम्हें शरीर का दुख नहीं करना चाहिए.

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