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बकरा ,पंडित और ठग,कहानी है पंचतंत्र की ,जिसमें बार बार ठग के बकरे को कुत्ते बताने पर ब्राह्मण बकरे को कुत्ता समझ रख देता है,जिसे ठग अपने अधिकार में ले लेते है।इससे सीख मिलती है कि बार बार झूठ को सच बताने पर झूठ सच ही लगता है।
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बकरा ,पंडित और ठग,कहानी है पंचतंत्र की ,जिसमें बार बार ठग के बकरे को कुत्ते बताने पर ब्राह्मण बकरे को कुत्ता समझ रख देता है,जिसे ठग अपने अधिकार में ले लेते है।इससे सीख मिलती है कि बार बार झूठ को सच बताने पर झूठ सच ही लगता है।
बकरा, प्राह्मन और तीन ठंग ये कहानी पंचतंत्र से सीके लिए हैं किसी गाउं में संभु दयाल नाम का एक प्राह्मन डेहता था एक बार वह अपनी यजमाल से एक बकरा लेकर अपने घर जा रहा था रास्ता लंबा और सूसार था आगे चाने पर रास्ते में उसे तीन ठंग मिले थे ब्राह्मन के कंदे पर बकरे को देखकर तीनों ने उसे हत्याने की योजना बने एक ने ब्राह्मन को रोक कर कहा पंडित जी ये आप अपने कंदे पर क्या उठा ले जा रहे हैं ये क्या अनर्थ कर रहे हैं ब्राह्मन होकर कुट्डे को कंदे पर बठा कर ले जा रहे हैं अगर आपको कुट्डा ही अपनी कंदे पर ले जाना है तो मुझे क्या आप जाने हैं और आपका काम थोड़े दूर चलने के बाद ब्राह्मन को तूसरा ठंग ले जा रहे हैं उसने ब्राह्मन को रोका और कहा पंडिजी चाए आपको पता नहीं कि उच्छकुन के लोगों को अपनी कंदे पर कुट्डा नहीं लागना चाहिए पंडिजी उसे भी जड़क कर आगे बढ़ गये आगे जाने पर उसे तीसरा ठंग लागे उसमें भी ब्राह्मन से उसके कंदे पर कुट्डा ले जाने का कारण सूचा इस पार ब्राह्मन को विश्वास हो गया कि उसने बक्रा नहीं बलकि कुट्डे को अपनी कंदे पर विठा रखा है थोड़ी दूर जाकर उसने बक्रे को कंदे से उतार दिया और आगे बढ़ � गड़े