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मायका स्त्री की आत्मा है। जो कभी पुरानी नहीं होती।
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मायका स्त्री की आत्मा है। जो कभी पुरानी नहीं होती।
सुप्रशप्त लेकी का अमरिता पृतन जी ले, माय के पच्चा खूब लिखा है। रिष्टे पुराने होते हैं पर माय का पुराना नहीं होता। जब धे जाओ, अलाय बलाय तल जाय। यही दूआ माँभी चाहते हैं। यहाँ वहाँ बश्पन के पकड़े विठ्रे होते हैं। कही सतु, कही खुती, कही आशु संते होते हैं। बश्पन की गलाव खटोली खाने का स्वाद बढ़ा देते हैं। अल्बं की तक्विरी कही जिसके लाद दुला दोते हैं। सामान इतना भी समेटूं। सामान इतना भी समेटूं। कुछ लखोँच छोच जाता है। तब ध्यान से रख लेना है। जिदायत की ताटना है� आचल मेवों के भाथ एपी हो। खुश रहना कहतर अपनी आचल में भर लेती हूँ। हाँ जाती हूँ मुस्कुराकर मैं भी। कुछ न कुछ छोड़तर अपना। रिष्टे पुरानी होती हूँ। जानी कि उम्माईका पुराना नहीं होता। उस तहींग को छोड़ना हर